Raksha Bandhan: When and How Did This Sacred Tradition Begin? : रक्षाबंधन भारत का एक प्रमुख पर्व है, जो भाई-बहन के बीच के पवित्र रिश्ते का प्रतीक है। इस दिन बहनें अपने भाइयों की कलाई पर राखी बांधती हैं और उनकी लंबी उम्र, सुख-समृद्धि की कामना करती हैं। भाई, इसके बदले में, अपनी बहनों की रक्षा करने का वचन देते हैं। इस त्योहार की परंपरा और इतिहास सदियों पुराना है, और इसकी शुरुआत से जुड़े कई पौराणिक, ऐतिहासिक और सांस्कृतिक प्रसंग हैं।
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रक्षाबंधन की पौराणिक उत्पत्ति : Mythological origin of Rakshabandhan
रक्षाबंधन के पर्व का उल्लेख कई पौराणिक कथाओं में मिलता है, जिनमें से कुछ प्रमुख निम्नलिखित हैं:
1. देवताओं और असुरों का युद्ध:
पौराणिक कथाओं के अनुसार, देवताओं और असुरों के बीच एक बार घमासान युद्ध छिड़ गया था। इस युद्ध में देवताओं के राजा इंद्र हार रहे थे। उनकी पत्नी, इंद्राणी (शची), ने तब एक पवित्र धागा (राखी) तैयार किया और उसे इंद्र के हाथ पर बांधते हुए प्रार्थना की कि यह धागा उनकी रक्षा करेगा। इस पवित्र धागे की शक्ति से इंद्र युद्ध में विजय प्राप्त कर सके। इस कथा से प्रेरित होकर, राखी को रक्षा का प्रतीक माना जाता है और रक्षाबंधन के पर्व का उद्गम बताया जाता है।
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2. द्रौपदी और भगवान कृष्ण:
महाभारत में एक प्रसंग के अनुसार, एक बार भगवान कृष्ण ने शिशुपाल का वध किया, जिससे उनके हाथ में चोट लग गई और खून बहने लगा। यह देख, द्रौपदी ने अपनी साड़ी का एक टुकड़ा फाड़कर कृष्ण की उंगली पर बांध दिया। इस कार्य से प्रभावित होकर, कृष्ण ने द्रौपदी को वचन दिया कि जब भी वह मुसीबत में होंगी, वे उनकी रक्षा करेंगे। यह वचन चीरहरण के समय पूरा हुआ जब कृष्ण ने द्रौपदी की लाज बचाई। इस कथा को रक्षाबंधन के इतिहास से जोड़ा जाता है और इसे राखी की शुरुआत के रूप में देखा जाता है।
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3. रानी कर्णावती और हुमायूं:
यह कथा मध्यकालीन भारत की है। मेवाड़ की विधवा रानी कर्णावती ने गुजरात के सुल्तान बहादुर शाह के आक्रमण से बचने के लिए मुगल सम्राट हुमायूं को राखी भेजी। हुमायूं ने इस राखी को स्वीकार कर कर्णावती को अपनी बहन के रूप में माना और उनकी रक्षा के लिए सेना लेकर चित्तौड़ की ओर बढ़ा। हालांकि हुमायूं समय पर नहीं पहुंच पाया और कर्णावती को जौहर करना पड़ा, लेकिन इस घटना ने राखी के महत्व को और भी बढ़ा दिया। यह कहानी भाई-बहन के रिश्ते में समर्पण और रक्षा की भावना को उजागर करती है।
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4. संत यज्ञवल्क्य और उनकी पत्नी का प्रसंग:
एक अन्य कथा के अनुसार, प्राचीन समय में संत यज्ञवल्क्य की पत्नी ने उनसे रक्षा सूत्र (राखी) की महत्ता के बारे में पूछा। संत ने बताया कि यह धागा भाई-बहन के बीच एक अटूट बंधन है, जो दोनों के बीच प्रेम, विश्वास, और समर्पण का प्रतीक है। इस कथा के आधार पर राखी का महत्व और भी गहरा हो जाता है।
रक्षाबंधन का ऐतिहासिक संदर्भ : Historical context of Rakshabandhan
रक्षाबंधन का इतिहास केवल पौराणिक कहानियों तक ही सीमित नहीं है, बल्कि इसमें ऐतिहासिक घटनाओं का भी महत्वपूर्ण योगदान है:
1. अलेक्जेंडर और पोरस:
जब सिकंदर ने भारत पर आक्रमण किया, तो उनकी पत्नी रोसाना को अपने पति की चिंता हुई। उसने भारतीय राजा पोरस को राखी भेजी और उसे अपना भाई मानते हुए सिकंदर को युद्ध में न मारने की प्रार्थना की। पोरस ने इस राखी का सम्मान करते हुए युद्ध में सिकंदर को जीवनदान दिया। यह कहानी भी रक्षाबंधन के पर्व की ऐतिहासिक महत्ता को दर्शाती है।
2. रानी पद्मावती और कर्णावती:
राजस्थान की रानी पद्मावती ने भी एक बार राणा संग्राम सिंह को राखी भेजी थी, जब उनका राज्य संकट में था। राणा संग्राम सिंह ने इसे स्वीकार कर उनकी रक्षा के लिए अपनी सेना भेजी। इस घटना से भी राखी के पर्व को समाज में मान्यता मिली।
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आधुनिक रक्षाबंधन : Modern Rakshabandhan :
वर्तमान समय में, रक्षाबंधन केवल धार्मिक अनुष्ठान तक सीमित नहीं रहा है, बल्कि इसे समाज में भाईचारे, प्रेम और एकता के प्रतीक के रूप में देखा जाता है। यह पर्व केवल हिंदू धर्म में ही नहीं, बल्कि विभिन्न धर्मों और समुदायों में भी मनाया जाता है। अब राखी बांधने का चलन केवल भाइयों तक सीमित नहीं रहा, बल्कि इसे मित्रों, रिश्तेदारों, और यहां तक कि गुरु-शिष्य के बीच भी बांधा जाता है।
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Raksha Bandhan: When and How Did This Sacred Tradition Begin?
उपसंहार
रक्षाबंधन की परंपरा भारतीय समाज में सदियों से चली आ रही है और यह भाई-बहन के रिश्ते को मजबूत बनाने के साथ-साथ समाज में शांति, प्रेम, और सौहार्द्र का संदेश भी फैलाती है। इस पर्व की शुरुआत चाहे पौराणिक हो या ऐतिहासिक, यह आज भी भारतीय समाज में अपने सांस्कृतिक महत्व को बनाए हुए है। रक्षाबंधन केवल एक पर्व नहीं, बल्कि एक भावना है, जो हमें हमारे रिश्तों की कद्र करने और उनके प्रति हमारी जिम्मेदारियों को समझने का अवसर प्रदान करती है।